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मन की बात की 88वीं कड़ी में लोगों ने सुना प्रधानमंत्री का सम्बोधन



Campus Adda| Meerut| क्षेत्रीय लोक संपर्क ब्यूरो मेरठ सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की ओर से आज दिनांक 24 अप्रैल 2000 22 को मेरठ के गढ़ रोड स्थित  गांधी आश्रम परिसर में मन की बात को रेडियो पर सामूहिक रूप से सुनने का कार्यक्रम आयोजित किया गया।
अपनी विशिष्ट शैली में नए नए विषयों की चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री ने डिजिटल पेमेंट के संबंध में उपलब्धियों को रेखांकित करते हुए कहा
"साथियो, क्या आप सोच सकते हैं कि कोई अपने घर से ये संकल्प लेकर निकले कि वो आज दिन भर, पूरा शहर घूमेगा! पिछले कुछ सालों में BHIM UPI तेजी से हमारी economy और आदतों का हिस्सा बन गया है। अब तो छोटे-छोटे शहरों में और ज्यादातर गांवों में भी लोग UPI से ही लेन-देन कर रहे हैं। Digital Economy से देश में एक culture भी पैदा हो रहा है। गली-नुक्कड़ की छोटी-छोटी दुकानों में Digital Payment होने से उन्हें ज्यादा से ज्यादा ग्राहकों को service देना आसान हो गया है। उन्हें अब खुले पैसों की भी दिक्कत नहीं होती। आप भी UPI की सुविधा को रोज़मर्रा के जीवन में महसूस करते होंगे। कहीं भी गए, cash ले जाने का, बैंक जाने का, ATM खोजने का, झंझट ही ख़त्म। मोबाइल से ही सारे payment हो जाते हैं, लेकिन, क्या आपने कभी सोचा है कि आपके इन छोटे-छोटे online payment से देश में कितनी बड़ी digital economy तैयार हुई है। इस समय हमारे देश में करीब 20 हज़ार करोड़ रुपए के transactions हर दिन हो रहे हैं। पिछले मार्च के महीने में तो UPI transaction करीब 10 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया। " 
दिव्यांग  जनों के सशक्तिकरण के लिए देश में हो रहे कार्यों की चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा "देश आजकल लगातार संसाधनों और infrastructure को दिव्यांगों के लिए सुलभ बनाने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है। देश में ऐसे कई Start-ups और संगठन भी हैं जो इस दिशा में प्रेरणादायी काम कर रहे हैं। ऐसी ही एक संस्था है – Voice of specially-abled people, ये संस्था assistive technology के क्षेत्र में नए अवसरों को promote कर रही है। जो दिव्यांग कलाकार हैं, उनके काम को, दुनिया तक, पहुंचाने के लिए भी एक innovative शुरुआत की गई है। Voice of specially abled people के इन कलाकारों की paintings की Digital art gallery तैयार की है। दिव्यांग साथी किस तरह असाधारण प्रतिभाओं के धनी होते हैं और उनके पास कितनी असाधारण क्षमताएं होती हैं - ये Art gallery इसका एक उदाहरण है।"

   जल संरक्षण के विषय में चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री ने लोगों से अपील की की जल संरक्षण के परंपरागत और नए तरीकों को अपनाएं  
"आपको उन करोड़ों लोगों को भी हमेशा याद रखना है, जो जल संकट वाले क्षेत्रों में रहते हैं, जिनके लिए पानी की एक-एक बूंद अमृत के समान होती है।अमृत महोत्सव के दौरान देश के हर जिले में 75 अमृत सरोवर बनाये जायेंगे। आप कल्पना कर सकते हैं कि कितना बड़ा अभियान है। वो दिन दूर नहीं जब आपके अपने शहर में 75 अमृत सरोवर होंगे। पानी की उपलब्धता और पानी की क़िल्लत, ये किसी भी देश की प्रगति और गति को निर्धारित करते हैं। आपने भी गौर किया होगा कि ‘मन की बात’ में, मैं, स्वच्छता जैसे विषयों के साथ ही बार-बार जल संरक्षण की बात जरुर करता हूँ। हमारे तो ग्रंथों में स्पष्ट रूप से कहा गया है –

पानियम् परमम् लोके, जीवानाम् जीवनम् समृतम्।|

अर्थात, संसार में, जल ही, हर एक जीव के, जीवन का आधार है और जल ही सबसे बड़ा संसाधन भी है, इसीलिए तो हमारे पूर्वजों ने जल संरक्षण के लिए इतना ज़ोर दिया। वेदों से लेकर पुराणों तक, हर जगह पानी बचाने को, तालाब, सरोवर आदि बनवाने को, मनुष्य का सामाजिक और आध्यात्मिक कर्तव्य बताया गया है। " _लोग अलग-अलग प्रयास लगातार करते आये हैं। जैसे कि, “कच्छ के रण” की एक जनजाति ‘मालधारी’ जल संरक्षण के लिए “वृदास” नाम का तरीका इस्तेमाल करती है। इसके तहत छोटे कुएं बनाए जाते हैं और उसके बचाव के लिए आस-पास पेड़-पौधे लगाए जाते हैं। इसी तरह मध्य प्रदेश की भील जनजाति ने अपनी एक ऐतिहासिक परम्परा “हलमा” को जल संरक्षण के लिए इस्तेमाल किया। इस परम्परा के अंतर्गत इस जन-जाति के लोग पानी से जुड़ी समस्याओं का उपाय ढूँढने के लिए एक जगह पर एकत्रित होते हैं। हलमा परम्परा से मिले सुझावों की वजह से इस क्षेत्र में पानी का संकट कम हुआ है और भू-जल स्तर भी बढ़ रहा है।"

 गणित के क्षेत्र में भारत के योगदान और वैदिक गणित के चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा - " साथियों, गणित तो ऐसा विषय है जिसे लेकर हम भारतीयों को सबसे ज्यादा सहज होना चाहिए। आखिर, गणित को लेकर पूरी दुनिया के लिए सबसे ज्यादा शोध और योगदान भारत के लोगों ने ही तो दिया है। शून्य, यानी, जीरो की खोज और उसके महत्व के बारे में आपने खूब सुना भी होगा। अक्सर आप ये भी सुनते होंगे कि अगर zero की खोज न होती, तो शायद हम, दुनिया की इतनी वैज्ञानिक प्रगति भी न देख पाते। Calculus से लेकर Computers तक – ये सारे वैज्ञानिक आविष्कार Zero पर ही तो आधारित हैं।" "विज्ञान का हर principle एक Mathematical Formula में ही तो व्यक्त किया जाता है। न्यूटन के laws हों, Einstein का famous equation, ब्रह्मांड से जुड़ा सारा विज्ञान एक गणित ही तो है। अब तो वैज्ञानिक भी Theory of Everything की भी चर्चा करते हैं, यानी, एक ऐसा Single formula जिससे ब्रह्मांड की हर चीज को अभिव्यक्त किया जा सके। गणित के सहारे वैज्ञानिक समझ के इतने विस्तार की कल्पना हमारे ऋषियों ने हमेशा से की है। हमने अगर शून्य का अविष्कार किया, तो साथ ही अनंत, यानि, infinite को भी express किया है। सामान्य बोल-चाल में जब हम संख्याओं और numbers की बात करते हैं, तो million, billion और trillion तक बोलते और सोचते हैं, लेकिन, वेदों में और भारतीय गणित में ये गणना बहुत आगे तक जाती है। हमारे यहाँ एक बहुत पुराना श्लोक प्रचलित है –

एकं दशं शतं चैव, सहस्रम् अयुतं तथा।

लक्षं च नियुतं चैव, कोटि: अर्बुदम् एव च।|

वृन्दं खर्वो निखर्व: च, शंख: पद्म: च सागर:।

अन्त्यं मध्यं परार्ध: च, दश वृद्ध्या यथा क्रमम्।|

इस श्लोक में संख्याओं का order बताया गया है। जैसे कि –

एक, दस, सौ, हज़ार और अयुत !

लाख, नियुत और कोटि यानी करोड़।

इसी तरह ये संख्या जाती है – शंख, पद्म और सागर तक। एक सागर का अर्थ होता है कि 10 की power 57। यही नहीं इसके आगे भी, ओघ और महोघ जैसी संख्याएँ होती हैं। एक महोघ होता है – 10 की power 62 के बराबर, यानी, एक के आगे 62 शून्य, sixty two zero। हम इतनी बड़ी संख्या की कल्पना भी दिमाग में करते हैं तो मुश्किल होती है, लेकिन, भारतीय गणित में इनका प्रयोग हजारों सालों से होता आ रहा है। अभी कुछ दिन पहले मुझसे Intel कंपनी के CEO मिले थे। उन्होंने मुझे एक painting दी थी उसमें भी वामन अवतार के जरिये गणना या माप की ऐसी ही एक भारतीय पद्धति का चित्रण किया गया था। Intel का नाम आया तो Computer आपके दिमाग में अपने आप आ गया होगा। Computer की भाषा में आपने binary system के बारे में भी सुना होगा, लेकिन, क्या आपको पता है, कि हमारे देश में आचार्य पिंगला जैसे ऋषि हुए थे, जिन्होंने, binary की कल्पना की थी। इसी तरह, आर्यभट्ट से लेकर रामानुजन जैसे गणितज्ञों तक गणित के कितने ही सिद्धांतों पर हमारे यहाँ काम हुआ है।"

"साथियों, हम भारतीयों के लिए गणित कभी मुश्किल विषय नहीं रहा, इसका एक बड़ा कारण हमारी वैदिक गणित भी है। आधुनिक काल में वैदिक गणित का श्रेय जाता है – श्री भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज को। उन्होंने Calculation के प्राचीन तरीकों को revive किया और उसे वैदिक गणित नाम दिया। वैदिक गणित की सबसे खास बात ये थी कि इसके जरिए आप कठिन से कठिन गणनाएँ पलक झपकते ही मन में ही कर सकते हैं। "


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