Subscribe Us

इंद्रप्रस्थ इंजीनियरिंग कॉलेज में "भारतीयता एक वैज्ञानिक विचार" पर संगोष्ठी का आयोजन

  • ज्ञान-विज्ञान की साधना प्राचीन काल से भारतीय विचार पद्धति : प्रवीण रामदास
  • प्राचीन भारत का साहित्य अत्यन्त विपुल एवं विविधता सम्पन्न है : डॉ सोमदेव भारद्वाज




साहिबाबाद। औद्योगिक क्षेत्र साइट 4 स्थित इंद्रप्रस्थ इंजीनियरिंग कॉलेज में विज्ञान भारती, एकेटीयू लखनऊ, इन्नोवेशन हब के संयुक्त तत्वाधान में "भारतीयता एक वैज्ञानिक विचार" विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का उद्घाटन मुख्य वक्ता राष्ट्रीय सचिव विज्ञान भारती प्रवीण रामदास, संगठन मंत्री विज्ञान भारती डॉ सोमदेव भारद्वाज, डॉ धीरेंद्र कुमार, पुनीत अग्रवाल, निदेशक डॉ अजय कुमार, डॉ आलोक चौहान ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर किया। निदेशक डॉ. अजय कुमार ने भारतीय संस्कृति के बारे में बताया। गांव-गांव जाकर विज्ञान को बढ़ावा देने के लिए विज्ञान भारती का आभार व्यक्त किया।



प्रवीण रामदास ने अपने संबोधन में कहा ने कहा आज से लगभग 30 साल पहले विज्ञान को पश्चिमी सभ्यता के आधार पर माना जाता था। विज्ञान को विदेश से जोड़ा जाता था। पूर्व में गुलाम मानसिकता की शिक्षा व्यवस्था ने भारत को ज्ञान विज्ञान में पिछड़ा बताकर आत्मबोध को नष्ट करने का प्रयास किया है। जबकि भारत का विज्ञान तर्क और तथ्यों से परे जीवन जीने की चेतना देता है। ज्ञान-विज्ञान की साधना अति प्राचीन काल से भारतीय विचार पद्धति में रही है। सर्व सामान्य लोकप्रिय ग्रन्थों में भी इसका विस्तार से वर्णन मिलता है। भारत में इस्लामिक आक्रमणों के साथ साथ यहां के विद्वानों की दुर्गति होने लगी, शिक्षा केन्द्र नष्ट किए गए।



डॉ. सोमदेव भारद्वाज ने कहा कि भारतीय विज्ञान परंपरा विश्व की प्राचीनतम वैज्ञानिक परम्पराओं में से एक है। विज्ञान की उत्पत्ति ईसा से 3000 वर्ष पूर्व भारत में हुई थी। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाई से प्राप्त सिंधु घाटी के साक्ष्यों से वहाँ के निवासियों के वैज्ञानिक दृष्टिकोण और वैज्ञानिक उपकरणों के प्रयोग का पता चलता है। प्राचीन काल में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में चरक और सुश्रुत, खगोल विज्ञान और गणित के क्षेत्र में आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त और आर्यभट्ट द्वितीय तथा रसायन विज्ञान के क्षेत्र में नागार्जुन का बहुत बड़ा योगदान रहा है। प्राचीन भारतीय विज्ञान तथा तकनीक को जानने के लिये प्राचीन साहित्य और पुरातत्व का सहारा लेना पड़ता है। प्राचीन भारत का साहित्य अत्यन्त विपुल एवं विविधता सम्पन्न है।
इस दौरान डॉ मनोज यादव, रवि आनंद, मुकुल जैन, डॉ सुनीता गोयल, रिचा चौधरी, उमा शर्मा, मीडिया प्रभारी अजय चौधरी आदि मौजूद रहे।

Post a Comment

0 Comments