-आईआईटी रूड़की के ग्रेटर नोएडा परिसर में 5-दिन के अल्पकालिक पाठ्यक्रम 'प्रशिक्षकों को प्रशिक्षित करें' का आयोजन किया जा रहा है
- इस पाठ्यक्रम कृषि क्षेत्र में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के उपयोग के सिद्धांत और व्यावहारिक पहलू शामिल हैं
ग्रेटर नोएडा। भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र (इन-स्पेस) ने कृषि क्षेत्र में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के उपयोग के संबंध में एक नवोन्मेषी अल्पकालिक कार्यक्रम, ‘प्रशिक्षकों को प्रशिक्षित करें’ ('ट्रेन द ट्रेनर्स') का आयोजन किया है। कृषि क्षेत्र के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग विषय से जुड़े 5 दिवसीय पाठ्यक्रम को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो), मेरठ इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) मेरठ, विभिन्न गैर-सरकारी इकाइयों (एनजीई) और शिक्षाविदों के सहयोग से डिज़ाइन किया गया है।
इन-स्पेस के संवर्धन निदेशालय के निदेशक डॉ. विनोद कुमार ने कहा की नया पाठ्यक्रम, कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की परिवर्तनकारी क्षमता के इस्तेमाल की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इसका उद्देश्य है, लोगों को कृषि क्षेत्र में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के सैद्धांतिक और व्यावहारिक ज्ञान से लैस करना। यह पहल आम आदमी को लाभ पहुंचाने के व्यापक लक्ष्य, अंत्योदय की भावना के साथ-साथ अपनी कृषि पद्धतियों की बेहतरी के लिए और खाद्य सुरक्षा तथा वहनीयता सुनिश्चित करने के लिए उन्नत प्रौद्योगिकी का उपयोग करने की हमारी प्रतिबद्धता के अनुरूप है।
कृषि क्षेत्र के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के उपयोग से जुड़े इस अल्पकालिक पाठ्यक्रम में खेती के तरीकों में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने के लिए डिज़ाइन किया गया एक व्यापक पाठ्यक्रम शामिल है। अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग सटीक (प्रेसिज़न) खेती में क्रांति ला सकता है और अभूतपूर्व सटीकता के साथ अपनी कृषि पद्धतियों को अनुकूलित करने के लिए सूचना की शक्ति के साथ किसानों को सशक्त बनाने के लिए उपग्रह से प्राप्त डाटा और अंतरिक्ष-आधारित परिसंपत्तियों का लाभ उठाया जा सकता है। जलवायु डाटा और मौसम के पूर्वानुमान के विश्लेषण से, मौसम अप्रत्याशित पैटर्न के मद्देनज़र फसलों की सुरक्षा करने में मदद मिलेगी।
इस पाठ्यक्रम में कृषि भूमि निगरानी, कीट/बीमारी का पता लगाना तथा पूर्वानुमान, फसल क्षेत्र का अनुमान तथा उत्पादन का पूर्वानुमान, फसल प्रणाली विश्लेषण, मृदा मानचित्रण एवं निगरानी, और कृषि सूखा आकलन तथा निगरानी संबंधी मॉड्यूल शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, बागवानी से जुड़ी फसलों के क्षेत्र का आकलन एवं निगरानी और कमांड क्षेत्र और जल संसाधन निगरानी पर भी सत्र होंगे।
इस पाठ्यक्रम में पौधों में पोषक तत्वों की कमी के लक्षणों के अध्ययन, सटीक कृषि के लिए सेंसिंग तथा विश्लेषण में प्रगति और फाइटोट्रॉन प्रौद्योगिकी के मौलिक अनुप्रयोगों जैसे विषय भी शामिल हैं। इसमें कृषि के व्यावहारिक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जिसमें मिट्टी का नमूना लेना, मिट्टी का प्रसंस्करण, ड्रोन और रोबोट प्रदर्शन और मिट्टी के विश्लेषण के तरीके शामिल हैं। अन्य व्यावहारिक पहलुओं में वृद्धि के माध्यमों की तैयारी, बीज अंकुरण का परीक्षण, आर्द्रता की माप तथा प्रबंधन, और रोशनी के गुणात्मक तथा मात्रात्मक जोखिम का आकलन शामिल है।
यह पाठ्यक्रम, कृषि क्षेत्र में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोगों के उपयोग को रेखांकित करता है और प्रतिभागियों को रिमोट सेंसिंग, भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) और कृषि में रिमोट सेंसिंग अनुप्रयोगों की बुनियादी बातों से परिचित कराता है। पाठ्यक्रम के दौरान ऑप्टिकल तरीकों का उपयोग कर फसल की इन्वेंटरी और स्वास्थ्य पर सत्र, पृथ्वी अवलोकन (ईओ) आधारित डिजिटल कृषि और वैश्विक फसल निगरानी प्रणाली, फसल की इन्वेंटरी के लिए माइक्रोवेव रिमोट सेंसिंग पर सत्रों के साथ व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान की गई। प्रतिभागियों को इसरो विभिन्न पोर्टल जैसे, भूनिधि, भुवन, वेदाज़ और मॉसडैक से भी परिचित कराया जाएगा, जो व्यापक कृषि प्रबंधन के लिए एआई और एमएल के साथ अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी को जोड़ता है।
यह पाठ्यक्रम 20 से 24 नवंबर, 2023 तक आईआईटी रूड़की के ग्रेटर नोएडा परिसर में आयोजित किया जा रहा है। पाठ्यक्रम के निदेशकों में डॉ. वीएम चौधरी, समूह निदेशक, एनआरएससी/इसरो, ब्रिजेश कुमार सोनी, उप निदेशक, आईएन-स्पेस और डॉ. राजेंद्र सिंह, निदेशक शोध एवं विकास, एमआईटी, मेरठ (पूर्व वैज्ञानिक आईएआरआई/आईसीएआर) शामिल हैं।
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